तीन तलाक पर आरिफ मोहम्मद खान का बयान बीजेपी के लिए हमेशा ढाल बना रहा. क़ुरान एंड कंटेम्पोरेरी चैलेंजेज नामक बेस्ट सेलर किताब लिख चुके आरिफ के बयानों के ज़रिए बीजेपी ने कई मौकों पर यह जताने की कोशिश की कि तीन तलाक का क़ानून मुस्लिमों के खिलाफ नहीं बल्कि मुस्लिमों के हित में लाया गया है. आरिफ खान को बीजेपी में पसंद करने के पीछे उनका कांग्रेस पर तमाम संदर्भों और मजहबी कट्टरता पर तर्कों और दृष्टान्तों से हमला करने की स्टाइल है.
बीजेपी को लगता है कि आरिफ मोहम्मद खान एक प्रगतिशील चेहरा हैं. उनके बयान पार्टी की राजनीति के फ़ेवर में जाते हैं. उन्हें साथ जोड़कर मुस्लिम विरोधी छवि को तार-तार भी किया जा सकता है. आरिफ को गवर्नर बनाकर बीजेपी संदेश देना चाहती है कि वह राष्ट्रवादी और प्रगतिशील मुस्लिम चेहरों को आगे बढ़ाने की पक्षधर भी है. केरल में पार्टी के विस्तार में भी आरिफ मददगार साबित हो सकते हैं.
बीते 18 अगस्त की बात है. नई दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में बीजेपी थिंक टैंक श्यामा प्रसाद मुकर्जी फ़ाउंडेशन ने तीन तलाक पर व्याख्यान रखा था. मुख्य अतिथि थे बीजेपी अध्यक्ष और गृहमंत्री अमित शाह. अमित शाह ने तब कहा था कि क़ानून बनने के बाद पहली बार वह तीन तलाक पर बोल रहे हैं.
चर्चा की शुरुआत में ही अमित शाह ने आरिफ़ मोहम्मद खान की खूब तारीफ की. उन्होंने कहा, “मैं आरिफ़ मुहम्मद खान को सभी की तरफ से बधाई देना चाहता हूँ जो मुसलमान होकर भी तीन तलाक़ के खिलाफ बोलते रहे. एक अकेला बंदा राजीव गांधी सरकार के फ़ैसले के खिलाफ खड़ा रहा. आज भी वो तीन तलाक़ पर मुखर होकर बोलते रहते हैं.
अमित शाह की इस तारीफ के बाद अटकलें लगने लगीं थीं कि सरकार आगे चलकर आरिफ़ मोहम्मद खान को कोई अहम जिम्मेदारी देकर उनके प्रगतिशील चेहरे का उपयोग कर सकती है. माना जा रहा था कि आरिफ को लेकर अमित शाह ने जो तारीफ की है वो बेसबब नहीं है. उस वक्त चर्चाएँ थीं कि बीजेपी प्रगतिशील चेहरे आरिफ मोहम्मद खान को पार्टी का चेहरा बना सकती है. उन्हें पीएम मोदी अपनी कैबिनेट में ले सकते हैं. या फिर अल्पसंख्यकों के कल्याण से जुड़े किसी मिशन पर लगा सकते हैं. आख़िरकार मोदी सरकार ने उन्हें केरल के राज्यपाल पद से नवाज़ा है.
कांग्रेस, जनता दल, बसपा से होते हुए 2004 में बीजेपी का दामन थामने वाले आरिफ मोहम्मद खान जब कैसरगंज लोकसभा सीट का चुनाव हारे तो फिर बाद में वह सक्रिय राजनीति से दूर हो गए. कभी कोई पूछता कि किस दल में हैं? तो कहते तटस्थ हूं... किसी दल से नहीं जुड़ा हूं.
आरिफ मोहम्मद खान ने राजनीतिक मंचों से खुद को दूर कर लिया. अब वह सामाजिक/सांस्कृतिक संगठनों के कार्यक्रमों तक सीमित हो गए. बतौर इस्लामिक स्कॉलर कट्टरपंथ की मुखर आलोचना के कारण ऐसे मसलों पर दक्षिणपंथी संगठनों में उन्हें बुलाने की होड़ लगी रहती. मुस्लिमों के प्रति कांग्रेस की सोच पर प्रहार करने वाले बयान हमेशा बीजेपी सर्किल में पसंद किए जाते रहे. मुस्लिमों में उन्हें चाहने वाले भी हैं और नापसंद करने वाले भी. एक वर्ग प्रगतिशील और सुधारक मानकर उन्हें पसंद करता है तो दूसरा धड़ा बीजेपी की लाइन पर चलने वाला शख़्स मानकर नापसंद भी करता है.
बीते 25 जून को लोकसभा में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शाहबानो केस के बहाने कांग्रेस को घेरते समय मुस्लिमों को लेकर गटर वाला बयान दिया तो अचानक आरिफ मोहम्मद खान मीडिया की सुर्खियों में आ गए. पीएम मोदी ने बग़ैर आरिफ का नाम लिए उनके पुराने इंटरव्यू का हवाला देते हुए कहा था कि कांग्रेस के एक मंत्री ने खुद कहा है कि कांग्रेस यह मानती है मुसलमानों के उत्थान की जिम्मेदारी उसकी नहीं है, अगर वो गटर में पड़े रहना चाहते हैं तो पड़े रहने दो. दरअसल गटर वाली बात नरसिम्हा राव ने आरिफ मोहम्मद खान से कही थी. पीएम मोदी के इस ज़िक्र के बाद लंबे अरसे बाद आरिफ मोहम्मद खान मेनस्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया में छा गए.
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